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कविता

कोई और तो नहीं

आरती


तुम सौंप दोगी जिस दिन
उसे अपना समान तक
वह तुम्हारे अंतःदेश की एक एक अँतड़ियाँ
हिला हिलाकर देखेगा
‘वहाँ कोई और तो नहीं!!’


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हिंदी समय में आरती की रचनाएँ